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ओन्को सर्जन डॉ. दीपक लिंबाचिया ने 1200 से अधिक डॉक्टरों को तालीम दी

देश के अग्रणी लेप्रोस्कोपिक सर्जनों में से एक, डॉ. दीपक लिम्बाचिया देशभर के डॉक्टरों के लिए व्यापक ट्रेनिंग प्रोग्राम (प्रशिक्षण कार्यक्रमों) के माध्यम से लेप्रोस्कोपी के क्षेत्र को और भी आगे बढ़ा रहे हैं।

पिछले एक दशक से, एडवांस गायनेक (स्त्री रोग) लेप्रोस्कोपी और ओन्को सर्जन तथा ईवा वूमन्स हॉस्पिटल, अहमदाबाद के संस्थापक डॉ. लिम्बाचिया ने 1,200 से अधिक डॉक्टरों को तालीम दी है। जो वास्तव में साथी चिकित्सकों के मार्गदर्शन और निरंतर व्यावसायिक विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता दर्शाती है।

इस पहल ने लेप्रोस्कोपी पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया है कि, इस क्षेत्र में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नवीनतम प्रगति प्रसारित हो। हाल ही में ने 5 और 6 जून को अहमदाबाद में आयोजित दो दिवसीय गहन प्रशिक्षण सत्र में पुणे, सूरत, चेन्नई, कोलकाता, इंदौर, राजकोट, भोपाल और नोएडा जैसे शहरों के प्रतिष्ठित अस्पतालों से आये डॉक्टरों के ग्रूप ने भाग लिया था।

इस सत्र में भाग लेने वाले डॉक्टरों ने हार्मोनिक स्केलपेल और अन्य उच्च तकनीक उपकरणों के उपयोग सहित अत्याधुनिक तकनीकें सीखी। इस दौरान उन्होंने डॉ. लिम्बाचिया की विशेष देखरेख और मार्गदर्शन में एंडोमेट्रियोसिस के लिए सर्जरी, आंत्र सिवनी के साथ एंडोमेट्रियोसिस, अंडाशय की गाँठ, रिसेक्शन और एनास्टोमोसिस के साथ एंडोमेट्रियोसिस और अन्य विभिन्न जटिल प्रक्रियाएं भी की।

डॉ. लिम्बाचिया ने कहा कि, “लेप्रोस्कोपिक सर्जनों की अगली पीढ़ी को तालीम देना, एक प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी है, जिसे मैं अपने दिल के करीब रखता हूं। इन युवा डॉक्टरों को लेेप्रोस्कोपी में नवीनतम प्रगति के बारे में सीखते हुए और अपने सर्जिकल कौशल में सुधार करते देखकर बहुत अच्छा लगाता है। ऐसे तालीम सत्रों में भाग लेकर वे अपने मरीजों को बेहतर देखभाल प्रदान करने में सक्षम हो रहे हैं। मैं वर्षों से अर्जित मेरे ज्ञान और विशेषज्ञता को, साथी चिकित्सकों के साथ साझा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।

इस धर्मार्थ पहल से न केवल सैकड़ों डॉक्टरों के कौशल में वृद्धि हुई है, बल्कि मरीजों को भी सीधा लाभ मिला है और उन्हें आवश्यक चिकित्सा देखभाल प्राप्त हुई। इस कार्यक्रम ने एक व्यापक प्रभाव भी उत्पन्न किया है। प्रशिक्षित डॉक्टर, नए कौशल के साथ अपनी प्रैक्टिस में वापस लौटते हैं, जिससे अंततः देशभर में मरीजों की देखभाल में सुधार हो रहा है।