जब किडनी फेल होती है, तो मरीजों के ख़ून से यूरिया जैसे अपशिष्ट पदार्थों को साफ़ करने के लिए डायलिसिस कराना जरूरी हो जाता है। जब ख़ून में यूरिया की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो यह स्वास्थ्य पर कई हानिकारक प्रभाव डाल सकती है। राजस्थान स्थित वाइटसकेयर डायलिसिस सेंटर्स के प्रमुख और सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ आलोक जैन ने इस बारे में बताते हुए कहा कि डायलिसिस क्लीनिक को समय-समय पर सामान्यतः महीने में एक बार मरीज के खून की जांच करानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि डायलिसिस से पर्याप्त यूरिया बाहर निकल रही है या नहीं। इसके लिए Kt /V भी कराया जा सकता है। Kt /Vसे पता चलता है कि आपके खून में से यूरिया की कितनी मात्रा साफ़ हो चुकी है। इसके अलावा Kt /V से ब्लड केमिस्ट्री और ब्लड काउंट की जांच भी होती है|
अगर डायलिसिस थेरेपी के दौरान खून से अतिरिक्त द्रव उचित मात्रा में निकल पा रहा है,ब्लड प्रेशर नियंत्रण में है, और सभी लैब पैरामीटर्स भी संतुलित हैं, तो यह संकेत होता है कि मरीज के लिए डायलिसिस कारगर साबित हो रही है। महीने में एक बार लैबटेस्ट कराने से आपकी डायलिसिस केयर टीम को यह जानकारी रहेगी कि आपकी थेरेपी सही दिशा में जा रही है या उस मे किसी प्रकार के परिवर्तन की ज़रूरत है |
डॉ जैन ने इस बारे में आगे बताते हुए कहा, “नियमित लैबटेस्ट कराने के पीछे मकसद यह होता है कि डायलिसिस मरीजों की कई चीजों की जांच बेहतर ढंग से हो सके। ब्लड टेस्ट कराने से आपको और आपकी हेल्थकेयर टीम को यह पता चलता है कि आपकी वर्तमान स्थिति कैसी है। आमतौर पर ब्लड टेस्ट हर महीने की शुरुआत में एक बार या जरूरत पड़ने पर एक से ज्यादा बार भी किया जा सकता है। ब्लड टेस्ट से मिली जानकारी से डॉक्टर या नेफ्रोलॉजिस्ट मरीज़ के स्वास्थ्य पर नज़र रख पाने में सक्षम रहते है। इस तरह के टेस्ट से आपको भी पता चलता है कि आपके शरीर में क्या चल रहा है। अगर इस तरह से कराये गए टेस्ट का रिजल्ट अच्छा आता है तो इसका मतलब है कि आपमें हेमोडायलिसिस कारगर है। अगर आप अपने ब्लड रिजल्ट पर नज़र रखना चाहते हैं, तो कृपया अपने हेल्थ केयर प्रोवाइडर से रिपोर्ट कार्ड मांगे। अगर आपको कोई संदेह है तो अपने नेफ्रोलॉजिस्ट से सवाल पूछें।”
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