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1 साल की उम्र के बाद बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए 7 जरूरी टीके: डॉ. अनुराग शर्मा

भारत में एक साल से कम उम्र के बच्चों में टीकाकरण का कवरेज अच्छा है, लेकिन एक साल की उम्र के बाद टीकाकरण कवरेज में गिरावट आने लगती है। इस कारण से देश में बहुत से बच्चों का आंशिक टीकाकरण ही होकर रह जाता है।बच्चों को उनके पहले जन्मदिन के बाद भी कुछ महत्वपूर्ण टीके लगवाना जरूरी है, जिससे कुछ गंभीर वैक्सीन प्रिवेंटेबल डिसीज के खिलाफ उनकी इम्यूनिटी मजबूत हो और उन्हें खुश एवं स्वस्थ भविष्य मिल सके।

इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) ने 1 से 2 साल की उम्र के बच्चों के लिए 7 जरूरी टीकाकरण की सिफारिश की है: चिकनपॉक्स एवं हेपेटाइटिस ए की दो डोज, मेनिंजाइटिस# और एमएमआर की दूसरी डोज, पीसीवी एवं डीटीपी एचआईबी आईपीवी की बूस्टर डोज और फ्लू की सालाना डोज। ये 7 जरूरी टीके बच्चों को चिकनपॉक्स, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, मेनिंजाइटिस, मीजल्स, मम्प्स, रुबेला, न्यूमोनिया, इन्फ्लूएंजा, डिप्थीरिया, टिटनस, परट्यूसिस, पोलियो और एचआईबी इन्फेक्शन जैसी 14 बीमारियों से बचा सकते हैं।

इन महत्वपूर्ण टीकों की जरूरत पर आदित्य हॉस्पिटलजयपुर के सीनियर कंसल्टेंट पीडियाट्रिशियन और एमबीबीएसएमडी पीडियाट्रिशियन डॉ. अनुराग शर्मा ने कहा, ‘अपनी प्रैक्टिस के दौरान मैंने ज्यादातर देखा है कि पहले साल के बाद बच्चों के टीकाकरण में गिरावटआने लगती है। इससे बच्चे ऐसी बहुत सी बीमारियों के कारण खतरे की जद में आ जाते हैं, जिनसे टीका लगवाकर बचना संभव है। माता-पिता को अपने बच्चे के टीकाकरण कार्यक्रम का पूरा पालन करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि 1 से 2 साल की उम्र में उन्हें 7 जरूरी टीके लग जाएं।इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने इन टीकों की सिफारिश की है। अपने डॉक्टर से परामर्श करें और बच्चों को आवश्यक रूप से टीका लगवाएं।’

1 साल की उम्र होने के बाद भी बच्चों में संक्रामक बीमारियों का खतरा ज्यादा रहता है, क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं होता है। इससे संक्रमित होने और स्थिति जटिल होने का खतरा बढ़ जाता है। ये जटिलताएं उनके विकास को बाधित कर सकती हैं और उनके फॉर्मेटिव एक्सपीरियंस (रचनात्मक अनुभव) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। शोध बताते हैं कि अधूरे टीकाकरण से पोषण की स्थिति भी खराब हो सकती है। इससे संक्रमणों की चपेट में आने और देरी से ठीक होने का खतरा और भी बढ़ जाता है। इतना ही नहीं, बच्चों को होने वाली बीमारियां माता-पिता के लिए भी चुनौती होती हैं, क्योंकि उन्हें मेडिकल केयर के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। इसके साथ-साथ इस बात की आशंका भी बढ़ जाती है कि परिवार का कोई अन्य सदस्य भी संक्रमण की चपेट में आ जाए।

इन टीकों को बचाव योग्य संक्रमणों के नियंत्रण, महामारी को रोकने, बीमारियों को खत्म करने और परिवारों एवं स्वास्थ्य व्यवस्था पर आर्थिक दबाव कम करने में प्रभावी पाया गया है। माता-पिता को टीकाकरण के पूरे शेड्यूल का पालन करने के लिए अपने पीडियाट्रिशियन से कंसल्ट करना चाहिए और प्राथमिकता के साथ ये 7 टीके लगवाने चाहिए, जिससे उनके बच्चों का स्वस्थ, प्रसन्न एवं बेहतर भविष्य सुनिश्चित हो।