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‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सफेदपोश अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूरी

देश के दो पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, न्यायमूर्ति यू. यू. ललित और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, ने भारत की आर्थिक ईमानदारी को बनाये रखने और ‘विकसित भारत 2047’  के राष्ट्रीय लक्ष्य को साकार करने के लिए सफेदपोश अपराधों (White-Collar Crimes) के विरुद्ध एकजुट और ठोस कार्रवाई की जरूरत पर जोर दिया है।

तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम (TPF) द्वारा आयोजित “टीपीएफ– दायित्व: नेशनल लीगल कॉन्फ्रेंस ऑन कॉम्बैटिंग व्हाइट कॉलर क्राइम” को संबोधित करते हुए दोनों न्यायविदों ने संस्थागत सुधार, कानूनी सामंजस्य और नैतिक पुनर्निर्माण की जरूरत पर जोर दिया, ताकि संस्थाओं में जनता का विश्वास फिर से बहाल किया जा सके।

सम्मेलन में “व्हाइट कॉलर क्राइम पर नियंत्रण हेतु 10 सूत्रीय चार्टर” भी जारी किया गया, जिसमें नीतिगत, संस्थागत और नैतिक उपायों का उल्लेख किया गया है। इस चार्टर का उद्देश्य पारदर्शिता को सशक्त बनाना, प्रवर्तन एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाना और पेशेवर जवाबदेही सुनिश्चित करना है।

टीपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक राजकुमार नाहटा ने घोषणा की कि यह चार्टर शीघ्र ही भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश को औपचारिक रूप से विचारार्थ सौंपा जाएगा।

श्री नाहटा ने कहा कि देश के पेशेवर समुदाय को व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने “दायित्व” यानी सार्वजनिक और निजी जीवन में नैतिक आचरण बनाए रखने के कर्तव्य को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें केवल कानून की भाषा ही नहीं, बल्कि ईमानदारी और निष्ठा की भावना का भी पालन करने का संकल्प लेना होगा। यदि हम सब इस सामूहिक मिशन में एकजुट हो जाएं, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश फिर से ‘सोने की चिड़िया’ कहलाएगा।”

न्यायमूर्ति यू. यू. ललित ने कहा कि सफेदपोश अपराध देश की आर्थिक संरचना को भीतर से खोखला कर रहे हैं, संस्थानों को कमजोर कर रहे हैं और विश्वास को क्षीण कर रहे हैं। उन्होंने जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक संगठित कानूनी और संस्थागत ढांचे की आवश्यकता बताई। उन्होंने चेताया कि, “अव्यवस्थित निगरानी और एक-दूसरे को काटते क्षेत्राधिकार, न्याय मिलने में विलंब करते हैं और अपराध रोकने की क्षमता को कमजोर करते हैं।”

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने भी चिंता जताते हुए कहा कि सफेदपोश अपराध न केवल कानून की सीमाओं को चुनौती देते हैं, बल्कि शासन की अंतरात्मा की भी परीक्षा लेते हैं। उन्होंने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को कठोरता के साथ मानवीय संवेदना का संतुलन बनाए रखना चाहिए।

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