शेल ने यूज़्ड ऑयल मैनेजमेंट सर्विस (इस्तेमाल किए जा चुके तेल के मैनेजमेंट की सेवा) की शुरुआत की। यह भारत में इस्तेमाल किए जा चुके तेल के निपटाने की प्रणाली को व्यवस्थित बनाने और रि-रिफाइनिंग की दर को बढ़ाने का एक नया प्रयास है, ताकि कचरे को कम करते हुए चक्रीय अर्थव्यवस्था यानी सर्कुलर इकोनॉमी के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। यह प्रयास 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने की शेल की प्रतिबद्धता के अंतर्गत शुरू किया गया है। इस प्रयास के अंतर्गत शेल ने पूरे देश से इस्तेमाल किया जा चुका तेल जुटाने और उसे फिर से रिफाइन करने के लिए इस्तेमाल किए जा चुके तेल को रि-रिफाइन करने वाली कंपनियों से समझौते किए हैं। ये सभी पार्टनर्स लुब्रिकेंट्स उद्योग के लिए सर्कुलर इकोनॉमी को गति देने के दृष्टिकोण को साझा करते हैं।
शेल की योजना आने वाले वर्षों में इस प्रयास का दायरा बढ़ाने के उद्देश्य से पार्टनर्स के अपने नेटवर्क को और मज़बूत करने की है। इस सेवा का उद्देश्य इस्तेमाल किए जा चुके तेल के निपटारे के लिए एक ऐसा ईकोसिस्टम तैयार करना है जो पूरी तरह व्यवस्थित हो। इसे उद्योग में चक्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिहाज़ से सबसे बड़ी चुनौती माना गया है। शेल की मंशा इस्तेमाल किए जा चुके तेल के रखरखाव की सबसे अच्छी प्रक्रियाओं के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने और रि-रिफाइनर्स और औद्योगिक पार्टनर्स के साथ मिलकर आरआरबीओ के लिए नए मानक तय करने में मदद करने की है।
इस मौके पर सुश्री मानसी त्रिपाठी, वाइस प्रेसिडेंट, शेल लुब्रिकेंट्स एशिया पैसिफिक, ने कहा, “हम भारत में उद्योग के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के साथ-साथ कचरे को कम करने की प्रक्रिया को किस तरह आगे बढ़ा रहे हैं, इसका नया प्रमाण इस्तेमाल किए जा चुके तेल के मैनेजमेंट की सेवा है। हमारा लक्ष्य लुब्रिकेंट्स में सर्कुलर इकोनॉमी को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाने और इस सेवा के लिए वृद्धि की संभावनाएं तलाशना है, ताकि कचरे को कम किया जा सके और इस तरह कुल उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सके। हम अपने उत्पादों और सेवाओं के माध्यम से ग्राहकों को उनका उत्सर्जन कम करने में मदद करने के अवसर तलाशते रहेंगे।”
सुश्री देबांजलि सेनगुप्ता, कंट्री हेड, शेल लुब्रिकेंट्स इंडिया ने कहा, “सॉल्यूशन आधारित ग्राहक केंद्रित संगठन होना हमारे कारोबारी मॉडल का मुख्य उद्देश्य है। यह प्रयास उन्हीं मूल्यों को दोहराता है और इससे हमें अपने ग्राहकों को लुब्रिकेंट्स से आगे बढ़कर व्यापक सेवाएं उपलब्ध कराकर उन्हें सहायता देने में मदद मिलेगी। यह तथ्य और भी महत्वपूर्ण है कि अब हमारे पास सर्कुलर इकोनॉमी की ओर बढ़ने की दिशा में पहला कदम बढ़ाने का अवसर है।”
इस्तेमाल किए जा चुके तेल को खतरनाक कचरे की श्रेणी में रखा जाता है और इसमें नुकसानदायक तत्व होते हैं। इस्तेमाल किया जा चुका एक लीटर तेल 10 लाख लीटर ताज़े पानी को बर्बाद कर सकता है[1]। इसके निपटारे की उचित प्रक्रिया के बिना 50 फीसदी लुब्रिकेंट्स पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। भारत में हर वर्ष 13 लाख टन इस्तेमाल किया जा चुका तेल पैदा होता है जिसमें से 15 फीसदी से भी कम रि-रिफाइन किया जाता है। इस्तेमाल किया जा चुका लुब्रिकेटिंग तेल खतरनाक श्रेणी का कचरा है जिसे कई तरह से इस्तेमाल करके निपटाया जाता है और भारत में इसका सबसे सामान्य इस्तेमाल इसे ईंधन के साथ निपटाना है। इस्तेमाल किए जा चुके तेल को जलाने से नुकसानदायक गैसों का उत्सर्जन होता है जिससे स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े खतरे पैदा होते हैं। इस्तेमाल किए जा चुके तेल को रि-रिफाइन करने से इन चीज़ों में मदद मिलती है:
• प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में
• लुब्रिकेंट्स के इस्तेमाल कर लिए जाने से जुड़े उत्सर्जन को कम करने और भारत को कार्बन उत्सर्जन खत्म करने से जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने में
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