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ब्रेन ट्यूमर के बारे में जागरूकता अभियान 

लोगों के दिमाग में एक आम धारणा रही है कि मस्तिष्क की कोई भी शल्य चिकित्सा से ज्यादातर मरीज स्थायी रूप से लकवाग्रस्त या निष्क्रिय स्थिति में पहुंच जाते हैं। वहीं, ब्रेन ट्यूमर के बारे में आम लोगों के बीच यह जानकारी देना बहुत जरूरी है कि अत्याधुनिक न्यूनतम शल्य क्रिया और हाई—टेक उपकरणों के इस्तेमाल से मरीज में मृत्यु का खतरा नहीं के बराबर रह जाता है और यह अत्यंत सुरक्षित इलाज है।

ब्रेन ट्यूमर के इलाज को लेकर न्यूरो सर्जरी के क्षेत्र में हुई हाल की तरक्की के कारण न्यूनतम शल्य क्रिया इलाज की सबसे बेहतरीन पद्धति बनकर उभरी है। ब्रेन ट्यूमर के कम से कम 45 फीसदी मामले कैंसर—मुक्त होते हैं और इसलिए सही समय पर इलाज कराने से मरीज सामान्य जीवन जी सकता है और सामान्य गतिविधियां भी जारी रख सकता है।

सही समय पर सर्जरी कराना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे न सिर्फ ट्यूमर के लक्षण पूरी तरह ठीक हो जाते हैं बल्कि अन्य घातक जटिलताएं भी नहीं उभर पाती है। लेकिन यदि मरीज और उनके परिजन सर्जरी की जटिलताओं से घबराकर यदि इलाज का दूसरा विकल्प आजमाने लगते हैं तो मरीज की स्थिति और बिगड़ सकती हैं।

आईबीएस हॉस्पिटल में सीनियर न्यूरोसर्जन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. सचिन कांधारी ने कहा, ‘न्यूरो सर्जरी के क्षेत्र में हाल की प्रगति के साथ, ब्रेन ट्यूमर के उपचार के लिए न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रियाएं उपचार के सर्वोत्तम तरीकों में से एक के रूप में उभर रही हैं। एंडोस्कोपिक ब्रेन ट्यूमर सर्जिकल प्रक्रिया न्यूरो सर्जन को उन स्थितियों को आसानी से खोजने और उनका इलाज करने की अनुमति देती है जो मस्तिष्क के भीतर गहरे हैं या नाक के माध्यम से सुलभ हैं।कार्यात्मक मस्तिष्क मानचित्रण, फ्लोरोसेंट माइक्रोस्कोप, अल्ट्रासोनिक एस्पिरेटर के साथ एकीकृत न्यूरो नेविगेशन सभी सामान्य मस्तिष्क को न्यूनतम / बिना नुकसान के ट्यूमर के अधिकतम / पूर्ण शोध में मदद करते हैं, अन्य गैर-इनवेसिव प्रक्रियाएं जो आमतौर पर उपयोग की जाती हैं, वे हैं एलआईटीटी [लेजर प्रेरित एब्लेशन ट्यूमर थेरेपी], गामा नाइफ है।

भारत में ब्रेन ट्यूमर से मौत मृत्युदर का दसवां सबसे बड़ा कारण है, क्योंकि इस जानलेवा रोग के मामले तेज गति से बढ़ रहे हैं और अलग—अलग आयुवर्ग के लोगों में अलग—अलग प्रकार के ट्यूमर होने के मामले सामने आ रहे हैं। ये ट्यूमर कैंसरयुक्त (असाध्य) या कैंसर—मुक्त भी होते हैं। जब असाध्य ट्यूमर बढ़ने लगता है तो इससे खोपड़ी पर असह्य दबाव बढ़ने लगता है और मस्तिष्क लगातार क्षतिग्रस्त होते रहने के कारण यह जानलेवा भी बन जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से इंटरनेशनल एसोसिएशन आॅफ कैंसर रजिस्ट्रीज (आईएआरसी) द्वारा जारी ग्लोबोकैन 2018 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल ब्रेन ट्यूमर के 28,000 से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। इस न्यूरोलॉजिकल बीमारी से जूझ रहे तकरीबन 24,000 मरीज अपना जीवन गंवा बैठते हैं।

उन्होंने कहा, ‘नए जमाने के एमआरआई स्कैन में मस्तिष्क में ट्यूमर की सही जगह का सटीक पता लगाने की क्षमता है। मस्तिष्क के सक्रिय हिस्सों में भी फंक्शनल एमआरआई (एफ—एमआरआई) की सहायता से भी स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना ट्यूमर का सटीक पता लगाया जा सकता है।’