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भारत में तंबाकू और शराब है कैंसर की सबसे बड़ी वजह

डब्लूएचओ के अनुसार भारत में तंबाकू की वजह से हर साल दस लाख से ज़्यादा लोगों की जान जाती है। इसका मतलब है कि देश में सभी तरह की मृत्यु में इसका प्रतिशत 9.5 है। दरअसल भारत में सिगरेट और तंबाकू से जुड़ी इस समस्या ने अपने पांव बहुत गहराई तक पसारे हुए है।

अगर कैंसर के आंकड़ों की बात करे, तो साल 2025 में कैंसर पीड़ित भारतीयों की संख्या 298 लाख होने का अनुमान है, जबकि साल 2021 में यह 267 लाख थी। पिछले साल सबसे ज़्यादा मामले उत्तर भारत (2408 पीड़ित प्रति 100,000) और उत्तर पूर्वी (2177 प्रति 100,000) राज्यों में थे और इसमें पुरुषों की संख्या सबसे ज़्यादा थी।

इंडियन कांउसिल फॉर मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट ‘बर्डन ऑफ कैंसर इन इंडिया’के अनुसार जितना कुल बीमारियों का बोझ है, उसमें 40% से अधिक सात तरह के कैंसर जिम्मेदार है। इसमें फेफड़ों का कैंसर (10.6%), स्तन कैंसर (10.5%), ओसोफेगस(5.8%), मुंह का कैंसर (5.7%), पेट का कैंसर (5.2%), लीवर (4.6%) और सर्विक्स यूटर्स (4.3%) है।

गुरुग्राम के फोर्टीस मेमोरियल रिसर्च अस्पताल के मेडिकल ओनकोलजी और हेमेटो-ओनकोलजी विभाग के सीनियर डॉयरेक्टर डॉ. अंकुर बहल का कहना है, “कैंसर के बढ़ते मामले वाक्या में ही चिंता का विषय है। आमतौर पर तंबाकू और शराब का सेवन ही कैंसर होने का मुख्य कारण होता है। बढ़ते मामलों की वजह बीमारी का देर से पता चलना और सही तरीके से देखभाल और इलाज न करवा पाना भी है। आर्थिक तंगी, इलाज का कोई अन्य तरीका अपनाना या कैंसर लाइलाज बीमारी है, जैसी गलत जानकारियों के चलते कुछ ही लोग कैंसर का पूरा इलाज करवा पाते हैं। इसके अलावा टायर-2 और टायर-3 शहरों में कैंसर की स्क्रीनिंग की सुविधाएं न होना भी कैंसर के मामलों का इजाफा होने का प्रमुख कारण है। साथ ही लोगों की गलत जीवनशैली, मोटापा और पर्यावरण कारणों के साथ-साथ तंबाकू और शराब का सेवन देश में कैंसर के मामलों को बढ़ा रहे हैं।”

सिर और गर्दन में कैंसर होने का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है तंबाकू का सेवन। सिर और गर्दन के कैंसर में तंबाकू का संबंध 85 फीसदी से अधिक है। सिर और गर्दन के कैंसर के नए मामलों में 70-80 फीसदी मामले तंबाकू और शराब सेवन से जुड़े हैं। इस बीमारी का रिस्क नॉन स्मोकर्स की तुलना में स्मोकर्स को दस गुना ज़्यादा है। सिर और गर्दन के कैंसर के रिस्क को सिगरेट छोड़कर और समय-समय पर जांच करवाकर कम किया जा सकता है।
अगर देखा जाए तो भारत में सिर और गर्दन का कैंसर तीसरे कैंसर के बोझ के रुप में उभर रहा है और यह सार्वजनिक स्वास्थ्य की समस्या बन रहा है।

डॉ. अंकुर बहल इस बारे में कहते है, “जल्दी बीमारी का पता चलने से लेकर रोकथाम के प्रोग्राम चलाकर कैंसर के मामलों को कम किया जा सकता है। दुनियाभर में सिर और गर्दन के कैंसर के मामले करीब 60 फीसदी एशिया में है और खासतौर से भारत में। भारत में एडवांस बीमारी के दो तिहाई से ज़्यादा रोगी है जबकि विकसित देशों से तुलना की जाए तो वहां करीब 40 फीसदी है। इस बात का भी डर है कि कहीं साल 2030 तक ये संख्या दोगुनी न हो जाए। अगर लोग समय रहते ओनकोलोजिस्ट से सलाह ले और बीमारी का शुरुआती स्टेज पर ही पता चल जाए, तो ज़िंदगी बचाई जा सकती है और इलाज के बाद रोगी गुणवता से भरपूर जीवन बिता सकता है।“

सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं जैसेकि यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज, सेहत से जुड़ी शिक्षा, इलाज की सुविधाएं और बीमारी का शुरुआती स्टेज पर पता चल सके, इसके लिए सेंटर बनवाकर देश में कैंसर के बोझ को कम किया जा सकता है।