जयपुर में बढ़ती चिकित्सा सुविधाओं को लेकर न केवल देश प्रदेश बल्कि सात समंदर पार से भी आने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है। गुलाबीनगर के चिकित्सकों पर ऐसा विश्वास जम गया है कि मरीज विदेशों से यहां केवल उपचार करवाने आने लगे हैं। इसी तरह का एक नी रिप्लेसमेंट का मामला शहर के रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल में सामने आया है। यह मामला कई मायनों में खास है। पहली खास बात तो यही है कि मरीज का वजन बहुत ही अधिक है। संभवतया जयपुर में पहली बार एक सौ छत्तीस किलो की मरीज की नी रिप्लेसमेंट सर्जरी हुई है। यह केस इसीलिए भी खास था क्योंकि मरीज एचआईवी पॉजिटिव भी थी ऐसे में उसकी सर्जरी करने में बेहद जोखिम था। हॉस्पिटल के सीनियर जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. आशीष शर्मा ने यह जटिल सर्जरी की।
पहले भी नी रिप्लेसमेंट करवा चुकी थी मरीज – डॉ. आशीष शर्मा ने बताया कि विदेश से आई एक मरीज को कई तरह की समस्याएं थीं। घुटने में दर्द की समस्या, अत्यधिक बढ़ा हुआ वजन और उसके अलावा वह एचआईवी पॉजीटिव थी यानी एड्स से ग्रस्त थी। जयपुर में वे पहले अपने एक घुटने की समस्या से निजात पाने के लिए नी रिप्लेसमेंट सर्जरी करवा चुकी थीं। उसी सफल इंजरी से प्रेरणा लेकर मरीज ने दूसरी घुटने की सर्जरी के लिए यहां रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल में आने को प्राथमिकता दी।
एचआईवी ग्रस्त थी मरीज – डॉ. आशीष ने बताया कि इस केस में सबसे बड़ी चुनौती मरीज का एचआईवी पॉजिटिव होना भी था। इसमें यह जानना बड़ा अहम था कि एचआईवी इंफेक्शन का वायरल मरीज को कितना प्रभावित कर चुका है। सेकेंडरी इंफेक्शन किस स्तर तक है। कई बार सैकडरी इंफेक्शन की वजह से मरीज की स्थिति अधिक जटिल हो जाती है। ऐसे में उसकी स्क्रीनिंग की जाती है। इसमें मरीज की इम्यूनिटी लॉ हो जाती है।
लो इम्यूनिटी थी बड़ी समस्या – एड्स के कारण लो इम्यूनिटी होने से कई दूसरे संक्रमण मरीज को घेर लेते हैं। कई अन्य परेशानियां झेलनी पड़ती है। कमजोर इम्यूनिटी के कारण परेशानी हो जाती है। इस पेशेंट्स की स्क्रीनिंग करते समय अधिक एहतियात बरतने पड़ते हैं। इन मरीजों को बाद में भी संक्रमण होने का खतरा अधिक रहता है। इसके लिए अल्ट्रा क्लीन ओटी, रूम, वार्ड की व्यवस्था होनी आवश्यक है।
चिकित्सकों के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य – ऐसे मरीजों का उपचार करते समय चिकित्सकों, नर्सिंग स्टॉफ और पैरामेडिकल स्टॉफ को अपना बचाव करना भी जरूरी है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। ऐसे में सावधानी बरतनी जरूरी हो जाती है। इसमें अगर किसी को यह संक्रमण हो जाता है तो इसका उपचार लंबा और बहुत स्लो होता है। जो अंत में बहुत अच्छे परिणाम देने वाला नहीं होता है। कोरोना की तरह ही ऐसे में मरीजों का उपचार करते समय पीपीई किट और अन्य कई तरह कि सावधानीया भी रखनी होती है।
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