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रूक्मणी बिरला हॉस्पिटल में अनोखी नी रिप्लेसमेंट सर्जरी

15 साल के लंबे समय से आर्थराइटिस की समस्या से जूझ रही 75 वर्षीय सरिता देवी (परिवर्तित नाम) के लिए जीवन तब नरक बन गया था जब इस बीमारी के कारण उनके दाहिने पैर में फ्रैक्चर भी हो गया था और उनका जीवन बिस्तर पर सिमट गया था। लेकिन शहर के रूक्मणी बिरला हॉस्पिटल के डॉक्टर्स मरीज के लिए फरिश्ते से कम न थे। उन्होंने जटिल सर्जरी से एक ही बार में उनके घुटनों की रिप्लेसमेंट और फ्रैक्चर को ठीक करने की जटिल सर्जरी कर उन्हें दोबारा चलने योग्य बनाकर उन्हें जीवन की नई आशा दी। हॉस्पिटल के सीनियर जॉइंट एंड ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. ललित मोदी ने यह जटिल सर्जरी की।

लगातार बढ़ रही थी परेशानी —  मरीज लंबे समय से इस परेशानी से ग्रस्त थी। इसके साथ ही उनकी हड्डियां भी बेहद कमजोर हो गई थीं। लंबे समय से अर्थराइटिस की परेशानी रहने के चलते उनकी हड्डियों में परेशानी बढ़ गई थी। हड्डियों का यह डिफेक्ट तीन सेमी तक हो गया था। इसमें घुटने का  बैंड करीब 45 डिग्री तक मुड़ गया था। इसके कारण मरीज को चलने फिरने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।  

अंतत: फ्रैक्चर हो गया —  मरीज को नी रिप्लेसमेंट की जरूरत थी, लेकिन उससे जुड़ी भ्रांतियों या डर के कारण उन्होंने कभी इस विकल्प को नहीं अपनाया। ऐसे में घुटने की हड्डियां टेढ़ी होती गईं। घुटने की हड्डी में बैंड बहुत अधिक हो गया, जिससे दोनों पैरों पर लोड ज्यादा होने लगा। अंतत: पैरों पर भार बढ़ने के कारण दाहिने तरफ के पैर में फ्रैक्चर हो गया। ऐसी स्थिति में मरीज पूरी तरह बिस्तर पर ही आ गई।  

एक सर्जरी से दो परेशानी दूर — बुरी तरह से परेशान मरीज ने कई जगहों पर चिकित्सकों से सलाह ली। डॉ. ललित मोदी ने बताया कि मरीज हमारे पास आया तो हमने उन्हें सलाह दी कि पैर के फ्रैक्चर को सही करने के साथ ही उनके घुटनों में बैंड को भी दुरुस्त करना पड़ेगा। इसके लिए सर्जरी करनी होगी। इसके जरिए आर्थराइटिस वाली समस्या और फ्रैक्चर दोनों सही हो जाएगा। हमने उनको समझाया कि जैसे ही घुटनों का अलाइनमेंट सही होगा, उससे पैर में आए फ्रैक्चर की रिकवरी तेजी से बढ़ जाती है। नी रिप्लेसमेंट के बाद ऐसे में आपको बिस्तर पर नहीं रहना पड़ता और आप सर्जरी के दूसरे दिन से ही चलना शुरू कर सकते हैं।

एडवांस इम्प्लांट लिया गया  — इस केस में कई चुनौतियां एक साथ थी। पहली तो यही थी कि बोन डिफेक्ट सबसे ज्यादा था। इसके लिए स्क्रू व सीमेंट के जरिए उस बोन के डिफेक्ट को मैनेज किया गया। इसके साथ ही जब डिफेक्ट इतना ज्यादा होता है तो रूटीन यानी सामान्य इम्प्लांट इस तरह के केसेज में काम नहीं आता है।  इसके लिए एडवांस इम्प्लांट काम में लिया गया। जिस तरह का फ्रैक्चर था उसमें एक खास तरह की एक्सट्रा रॉड लगाई जो इस तरह के केसेज के लिए ही बनी होती है।

अगले दिन से ही चलना किया शुरू — इस सर्जरी में लगाई गई लंबी रॉड से फ्रैक्चर के साथ ही इम्प्लांट को भी अटैच कर दिया जाता है। एक रॉड से दो काम किए जाते हैं। पेशेंट के घुटने का एलाइनमेंट सीधा हो गया। इसके साथ ही अगले दिन से ही मरीज ने चलना शुरू कर दिया। सर्जरी के सात दिन बाद मरीज वॉकर की मदद से आराम से चल फिर रहा है।

मरीज को मानों मिला नया जीवन – मरीज के परिजनों का कहना है कि लंबे समय से उन्हें सहारे से चलना फिरना पड़ रहा था। लेकिन रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने उन्हें नया जीवन मिल गया। सर्जरी के डर के कारण ही समस्या इतनी बढ़ गई थी लेकिन अच्छी काउंसलिंग के कारण हम सर्जरी के लिए निर्णय ले पाए। डॉक्टर्स ने उनकी उम्र को देखते हुए केस को बहुत अच्छे से मैनेज किया और सर्जरी के अगले दिन ही उनको चलता देखना हमारे लिए भावुक क्षण था।