मौजूदा समय में पूरी दुनिया में खाद्य तेलों की कीमतें आसमान को छू रही हैं और यह ‘‘आयातित मुद्रास्फीति‘‘ न केवल सभी हित धारकों को, बल्कि भारतीय उपभोक्ताओं की रातो की नींद हराम कर रही है। लगता नहीं है कि आने वाले समय में इनकी कीमतों में कोई नरमी आए, वहीं इण्डोनेशिया जैसे कुछ निर्यातक देशों ने भी लाइसेंस के माध्यम से पॉम ऑयल के निर्यात को और नियमित करना शुरू कर दिया है।
रूस और यूक्रेन के बीच ब्लैक सी रीजन में तनाव को लेकर भी, सन फ्लावर की कीमतों में आग लग रही हैं जो कि इसी क्षेत्र से आता है। उधर ला-नीना तूफान के कारण ब्राजील में खराब मौसम के चलते भी लैटिन अमेरिका में सोया की फसल भी कम हुई है।
सरसों की अधिक फसल और शीघ्र सरकारी उपाय…..
इस परिदृश्य में यह ध्यान देने योग्य है कि घरेलू सरसों की फसल काफी अच्छी तरह से आकार ले रही है और हम चालू वर्ष के दौरान एक सर्वकालिक रिकॉर्ड फसल की उम्मीद कर रहे हैं जो उपभोक्ताओं को कुछ राहत देने में मदद कर सकती है। भारत सरकार भी नई फसल सरसों के बाजार में आने से पहले ही कमतों को कम करने के लिए तात्कालिक उपाय करने के प्रति सक्रिय हो रही है इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है सरकार का सीपीओ शुल्क में हाल ही की गई 2.5 प्रतिशत की कमी करना है।
द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी एवं कार्यकारी निदेशक बी.वी मेहता के अनुसार, देश में ऑल इंडिया एपेक्स और प्रीमियर एसोसिएशन ऑफ एडिबल ऑयल के सदस्य, द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सदस्य खाद्य तेलों की सुचारू आपूर्ति श्रृंखला बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे है एवं सरकार के सक्रिय निर्णयों से जुड़े हुए हैं, ने अपने सदस्यों को खाद्य तेलों पर एमआरपी 3000 रुपए से 5000 रुपए प्रति टन (3 रुपए से 5 रुपए प्रति किलो) कम करने का आग्रह किया है एवं सलाह दी है।
एसईए सदस्यों को इस छोटे से होली उपहार से हमारे उपभोक्ताओं को सहायता करने और उत्सवों में कुछ और रंग शामिल करने में मदद मिल सकेगी।
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