भारत में ब्रेस्ट कैंसर प्रमुख रूप से ज्यादा तेजी से फैलने वाला कैंसर बनता जा रहा है और जयपुर शहर के डॉक्टरों ने नोट किया है कि यह राजस्थान में महिलाओं में सबसे आम कैंसर ब्रेस्ट कैंसर है। 2019 में बीमारी के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण- कोडित रजिस्ट्री ऑफ कैंसर ने ब्रेस्ट कैंसर को राज्य में महिलाओं में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर पाया है।
महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, जयपुर के श्री राम कैंसर सेंटर के एसोसियेट प्रोफ़ेसर डॉ अजय यादव ने कहा कि ब्रेस्ट कैंसर भारत में कुल कैंसर का 10% और सभी महिलाओं में कुल कैंसर का 24% है,मेनोपॉज के बाद की महिलाओं को यह कैंसर होने का ज्यादा खतरा रहता है। जागरूकता की कमी और लाइफस्टाइल में बदलाव के कारण उत्तर भारत में ब्रेस्ट कैंसर ज्यादा तेज गति से बढ़ रहा है। राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (एनसीआरपी) का कहना है कि भारत में कैंसर के केसेस की संख्या 2020 में 13.9 लाख से लगभग 20% की वृद्धि से बढ़कर 2025 तक 15.7 लाख होने की उम्मीद है।
महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, जयपुर के श्री राम कैंसर सेंटर के एसोसियेट प्रोफ़ेसर डॉ अजय यादव ने इस बारे में विस्तार से बात करते हुए कहा, “कुछ उत्तर भारतीय राज्यों की तरह राजस्थान में भी महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का बढ़ता प्रचलन नज़र आ रहा है, ये महिलाएं ज्यादातर 45 से 54 आयु वर्ग की हैं, ये महिलाएं मेनोपॉज के बाद की महिलाएं हैं। राज्य में ग्रामीण और साथ ही शहरी क्षेत्रों में जीवनशैली में बदलाव, खराब पूर्वानुमान और जागरूकता की कमी के कारण ब्रेस्ट कैंसर के केसेस बढ़ रहे हैं। ब्रेस्ट कैंसर के आनुवंशिक और वंशानुगत फैक्टर भी होते हैं, लेकिन हमें जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा क्योंकि इनमें से अधिकांश केसेस को एडवांस स्क्रीनिंग विधियों के माध्यम से जल्दी पता लगाया जा सकता है। हमें ऐसे कई केसेस भी मिले हैं, जिनमें से महामारी के कारण जल्दी डायग्नोसिस में देरी हो गयी जिससे इन केसेस का पता एडवांस स्टेज में चला।”
अगर प्रारंभिक स्टेज (पहले और दूसरे) में ब्रेस्ट कैंसर का पता चलता है, तो पांच साल तक के जीवित रहने की दर 80 से 90% के साथ ठीक होने की दर ज्यादा रहती है। चौथे स्टेज में भी हार्मोन थेरेपी या टार्गेटेड थेरेपी के साथ इलाज करने पर कुछ मरीज कई वर्षों तक जीवित रहते हैं।
ब्रेस्ट कैंसर के खतरे वाले फैक्टर्स में मोटापा, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी का उपयोग, देर से गर्भावस्था और शराब का उपयोग करना शामिल हैं। जिन खतरों को नहीं टाला जा सकता है उनमे उम्र, महिला होना, श्वेत जाति, पारिवार में किसी को ब्रेस्ट कैंसर होने, कुछ आनुवंशिक परिवर्तन, और घने ब्रेस्ट टिश्यू शामिल हैं। ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों में ब्रेस्ट या अंडरआर्म (बगल) में एक गांठ, ब्रेस्ट के एक हिस्से का मोटा होना या सूजन होना, ब्रेस्ट की त्वचा में जलन या डिंपल सा होना, ब्रेस्ट के निप्पल में लालिमा या परतदार त्वचा का होना, निप्पल से डिस्चार्ज होना आदि शामिल हैं। अन्य लक्षणों में ब्रेस्ट के आकार में कोई बदलाव या ब्रेस्ट के किसी भी क्षेत्र में दर्द होना शामिल हो सकता हैं।
डॉ यादव ने कहा, “मैमोग्राफी और क्लिनिकल ब्रेस्ट जांच आमतौर पर ब्रेस्ट कैंसर की जांच में इस्तेमाल की जाने वाली प्रमुख विधियां हैं। ब्रेस्ट कैंसर के ज्यादा ख़तरे वाली सभी महिलाओं की जांच की जानी चाहिए। 40 साल की उम्र के बाद सभी महिलाओं में सालाना मैमोग्राफी से ब्रेस्ट कैंसर की जांच शुरू करा देनी चाहिए। यह जांच उन लोगों के लिए पहले शुरू किया जाना चाहिए जिनके परिवार में किसी को ब्रेस्ट या ओवेरियन कैंसर हो और आनुवंशिक टेस्टिंग उनमे पॉजिटिव हो।” पश्चिमी देशों में ब्रेस्ट कैंसर मरीजों का डायग्नोसिस प्रारंभिक अवस्था में किया जाता है, इसलिए वहां जीवित रहने की दर बहुत ज्यादा होती है। ब्रेस्ट कैंसर का पता अगर शुरूआती स्टेज में ही चल जाए तो इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।
डॉ यादव ने आगे बताते हुए कहा, “ब्रेस्ट कैंसर के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज शुरुआती डायग्नोसिस और इलाज है। अगर पहले स्टेज या दूसरे स्टेज में डायग्नोसिस किया जाता है तो जीवित रहने की दर 80से 90% होती है। एडवांस स्टेज में पांच साल की जीवित रहने की दर 10 से 20% रह जाती है। अगर प्रारंभिक अवस्था में डायग्नोसिस किया जाता है, तो इलाज के तौर पर सर्जरी कराना सबसे सबसे अच्छा होता है। सर्जरी के बाद बीमारी को फिर से होने के खतरे को कम करने के लिए बिना रेडियोथेरेपी या रेडियोथेरेपी के साथ कीमोथेरेपी की जाती है। अगर एडवांस स्टेज में ब्रेस्ट कैंसर का पता चलता है तो मरीज का कीमोथेरेपी या हार्मोन थेरेपी के साथ इलाज किया जाता है। कुछ मरीजों को कीमोथेरेपी के बिना टार्गेटेड थेरेपी या इम्यूनोथेरेपी के साथ इलाज किया जा सकता है। टार्गेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी कैंसर के इलाज के नए तरीके हैं, जो ज्यादा प्रभावी हैं, और कीमोथेरेपी की तुलना में इसके कम साइड इफेक्ट हैं।”
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