वर्ष 2020 में राजस्थान में प्रोजेक्ट हर एण्ड नाउ से सम्बद्ध 20 साल की उद्यमी मेघना राठौड़ अपने उद्यम नारीक्षा के माध्यम से माहवारी के दौरान हाइजीन तथा पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं को हल करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। नारीक्षा मुख्य रूप से तिनकों एवं अन्य प्राकृतिक सामग्री से बायोडीग्रेबल सेनिटरी पैड बनाता है।
एक किसान की बेटी 20 वर्षीय एमबीए छात्रा जो कि राजसमन्द, उदयपुर की रहने वाली है। अपने नारीक्षा पैड्स प्राइवेट लिमिटेड के उद्यम के माध्यम से राजस्थान में सैनिटरी नेपकिन से संबंधित समस्याओं का हल करने के लिये प्रयासरत है, जिस समय मेघना ने नारीक्षा पैड के प्रोटोटाइप पर काम करना शुरू किया, वे प्रोजेक्ट हर एण्ड नाउ के साथ जुड़ गई।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक भारत में सिर्फ 36 फीसदी महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, जबकि शेष महिलाएं पुराने कपड़े एवं अन्य हानिकर सामग्री जैसे राख, पत्तियां, कीचड़ आदि का इस्तेमाल करती हैं। सरकार एवं निजी संस्थाओं द्वारा किए गए असंख्य प्रयासों के बावजूद भारत में माहवारी के दौरान हाइजीन के बारे में जागरुकता की कमी है, खासतौर पर देश के ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी बदतर है। इसके अलावा माहवारी के बारे में फैली गलत जानकारी एवं मिथकों के चलते हालात और भी खराब हो जाते हैं। इसके बाद सैनिटरी पैड एवं पीरियड्स में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोडक्ट्स का डिस्पोज़ल भी एक बड़ा मुद्दा है। अकेले भारत में, 12 बिलियन से अधिक सैनिटरी पैड हर साल फेंके जाते हैं; इनमें से ज़्यादातर पैड प्लास्टिक या ऐसी सामग्री से बने होते हैं जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। आमतौर पर इन पैड्स को लैण्डफिल में डाला जाता है और इसके डिकम्पोज़ होने में 500 साल भी अधिक समय लगता है, ऐसे में ये पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हैं।
राजस्थान का एक उद्यम नारीक्षा पैड्स प्राइवेट लिमिटेड उपरोक्त समस्याओं को हल करने के लिए प्रयासरत है। यह उद्यम ग्रामीण एवं भारतीय महिलाओं के लिए बायोडीग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन के निर्माण एवं इनके वितरण में सक्रिय है ताकि देश में माहवारी से जुड़ी उपरोक्त समस्याओं को दूर किया जा सके और महिलाओं को माहवारी के दौरान स्वच्छता के बारे में जागरुक बनाया जा सके। नारीक्षा के 100 फीसदी ओर्गेनिक एवं बायोडीग्रेडेबल पैड स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों जैसे एग्रो फाइबर से तैयार किए जाते हैं। इस पैड में एर्ब्ज़ाबेन्ट शीट बनाने के लिए फसलों के अवशेष जैसे तिनकों आदि का उपयोग किया जाता है और शुद्ध कॉटन की नॉन-वुवेन शीट से अतिरिक्त लेयर बनाई जाती है। ये पैड इस्तेमाल में आसान और आरामदायक होते हैं। हालांकि वर्तमान में ये प्रोडक्ट एमवीपी अवस्था में हैं, किंतु इन्हें यूजर्स से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।
हर एण्ड नाउ के साथ इस साझेदारी के बारे में बात करते हुए मेघना राठौड़ ने कहा, ‘‘हर एण्ड नाउ प्रोग्राम मेरे जीवन में वरदान बन कर आया, इसने मुझे कारोबार के बारे में जानकारी देकर सशक्त बनाया। उनके सहयोग से ही अपने विचार को अंजाम दे सकी हूं और इसे प्रोटोटाईप में और फिर रैडी-टू-यूज़ प्रोडक्ट में बदल पाई हूं। प्रोग्राम के दौरान मिले सहयोग एवं मार्गदर्शन ने मेरे सभी सवालों को हल किया। मैं हर एण्ड नाउ के मेंटर्स के प्रति आभारी हूं जिन्होंने मुझे लगातार सहयोग एवं मार्गदर्शन दिया है।
मेघना एक छोटी सी प्रोडक्शन युनिट भी स्थापित करना चाहती हैं, जहां वे उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ मशीनें लगाएंगी। अपने गांव से शुरूआत करने के बाद वे नारीक्षा को देश भर में विस्तारित करना चाहती हैं, ताकि भारतीय महिलाओं को माहवारी के प्रबन्धन का स्थायी एवं गरिमामय तरीका मिल सके।
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