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हार्ट अटैक के बाद काला पड़ने लगा था हाथ, बढ़ गया था स्ट्रोक का खतरा, डॉक्टर्स ने बचाया

हार्ट अटैक से छाती में हुए दर्द को नजरअंदाज करना एक महिला को भारी पड़ गया जिससे खून का थक्का (क्लॉट)  उसके दिमाग और बाएं हाथ में चला गया। हाथ में थक्का जमने से उसके हाथ में गैंगरीन होना शुरू हो गया था वहीं ब्रेन का थक्का भी किसी भी समय बड़े स्ट्रोक का कारण बन सकता था। लेकिन शहर के सीके हार्ट अटैक से छाती में हुए दर्द को नजरअंदाज करना एक महिला को भारी पड़ गया जिससे खून का थक्का (क्लॉट)  उसके दिमाग और बाएं हाथ में चला गया। हाथ में थक्का जमने से उसके हाथ में गैंगरीन होना शुरू हो गया था वहीं ब्रेन का थक्का भी किसी भी समय बड़े स्ट्रोक का कारण बन सकता था। लेकिन शहर के सीके बिरला हॉस्पिटल में हुए इस अनोखे मामले में नई तकनीक से हाथ में जमे खून के थक्के को निकालकर मरीज का हाथ कटने से बचाया, साथ ही दूसरे जानलेवा खतरों से भी बचा लिया। एडिशनल डायरेक्टर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रूद्र देव पांडेय ने यह सफल केस किया। 

हार्ट अटैक के चार दिन बाद पहुंची थी अस्पताल – सीके बिरला हॉस्पिटल के एडिशनल डायरेक्टर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रूद्र देव ने बताया कि 42 वर्षीय सुनीता (परिवर्तित नाम) लगातार उल्टियां आना, लगातार हिचकी और शरीर में कमजोरी और बाएं हाथ की उंगलियां काली पड़ने के लक्षण के कारण हॉस्पिटल पहुंचीं। यहां हमने मरीज के ईको, सिटी स्कैन और कलर डॉप्लर टेस्ट किये जिसमें सामने आया कि मरीज के ब्रेन में क्लॉट चला गया था और एक क्लॉट उनके हाथ में था जिससे वहां भी ब्लॉकेज हो गया था। मरीज से पूछताछ में पता लगा कि हॉस्पिटल पहुंचने से चार दिन पहले चेस्ट पेन हुआ था जोकि हार्ट अटैक था। लेकिन महिला ने लक्षण पर ध्यान नहीं दिया और हार्ट का कुछ हिस्सा ख़राब हो गया था और जिसपर जमा क्लॉट आगे रक्त प्रवाह के साथ ब्रेन और बाएं हाथ में चला गया। उनके हाथ का सीटी स्कैन करने पर क्लॉट मिला। 

उन्होंने बताया कि सामान्यत: इस तरह के क्लॉट को निकालने के लिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं या सर्जरी की जाती हैं। लेकिन इस केस में मरीज को यह दवाएं इसीलिए नहीं दी जा सकती थी क्योंकि उनके ब्रेन में इंफाक्ट था जिससे उन्हें ब्रेन हैमरेज भी हो सकता था। 

नई तकनीक से बिना सर्जरी निकाला क्लॉट – संभावित खतरों को देखते हुए डॉक्टर्स ने नई तकनीक से बिना सर्जरी से मरीज का इलाज करने का निर्णय लिया। इसके लिए नवीनतम थ्रोम्बोऐस्पिरेशन  कैथेटर का इस्तेमाल किया गया जो पहले ब्रेन स्ट्रोक के मरीज में क्लॉट को निकालने के काम आता था। डॉ. रूद्र देव ने बताया कि नई जनरेशन के कैथेटर से हम मरीज के हाथ में प्रभावित हिस्से में गए और उसे पम्प और उसमें लगे स्पेशल कैथेटर से थक्के को खींचकर बाहर निकाल दिया। क्लॉट निकालते ही मरीज का हाथ का खून का प्रवाह सामान्य रूप से होना शुरू हो गया और हथेली गरम होने लगी , नूरॉलॉजिस्ट की सलाह अनुसार ब्लड थिनर देकर ब्रेन में जमे थक्के को घोलकर खत्म कर दिया गया। मरीज अब पूर्णत: स्वस्थ है और सामान्य दिनचर्या में लौट चुकी हैं।