एशियन पेन्ट्स रॉयल प्ले ने इस बार त्यौहारों के मौसम की शुरुआत आकर्षक वाल टेक्सचर – ‘ताना बाना’ से की है। भारतीय शिल्प और बुनावट की विरासत से प्रेरित ‘ताना बाना’ कला का एक नमूना है जो भिन्न किस्म की भावनाओं और यादों को उभारेगा। पुरखों के घरों की चारपाई से लेकर फल और फूल रखने की हमारी व्यापक और सीक की बनी टोकरी, दादी माँ की अमूल्य इक्कत साड़ी से लेकर दुल्हन के कपड़ों से बंधेज दुपट्टा तक, ताना-बाना ने हमारे जीवन और दीवारों को सजाने के लिए बहुमूल्य शिल्प नए सिरे से तैयार किए हैं।
अपने किस्म के अनूठे इस कलेक्शन के बारे में बताते हुए एशियन पेन्ट्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और सीईओ, अमित सिंगले ने कहा कि, “एशियन पेन्टस में हमें ‘रॉयल प्ले ताना बाना’ साझा करते हुए खुशी हो रही है। यह सही अर्थों में वाल टेक्सचर का एक विशेष कलेक्शन है जो भारत के हृदय और आत्मा -शिल्पकारों और उनके शिल्प से प्रेरित है। इन शिल्पों का हमारी दीवारों में निर्बाध पारगमन न सिर्फ जुड़ाव की मजबूत भावना का विकास करेगा बल्कि एक अनूठी सजावट का थीम भी तैयार करेगा – कुछ ऐसा जो देसी और समकालीन भी है। यह कलेक्शन भारतीय घरों में आसानी से फिट होगा और अच्छी यादें सामने लाएगा।”
‘ताना बाना’ का मतलब है किसी काम को करने के लिए किए जाने वाले आवश्यक प्रबंध, जैसे कि कपड़ा बुनने के लिए निश्चित लंबाई और चौड़ाई के बल यानी बुने हुए सूत। किसी रचना की मूल बनावट यहाँ सूत और अन्य मामले में तार या तत्व को भी ताना-बाना कहते हैं। सूत धागे में, धागा कपड़ा में और कपड़ा जीवनशैली में बदलता है।
इस कलेक्शन में आठ उत्कृष्ट वाल टेक्सचर हैं जो कुशल शिल्पकारों की पीढ़ियों से चले आ रहे शिल्प का सम्मान करते हैं। वर्षों पुरानी परंपराओं से लेकर समकालीन घरों तक ‘ताना बाना’ के फिनिश खास हैं तथा भारत के सभी हिस्सों का प्रतिनिधत्व करते हैं। ये टेक्सचर आपको कई शेड के मेल में मिलते हैं और इनके मेटैलिक तथा नॉन मेटैलिक रूपांतर भी हैं तथा निश्चित रूप से ये आपके रहने की जगह को आधुनिक आउटलुक के साथ निजी छाप भी देंगे।
प्रत्येक टेक्सचर अपनी अवधारणा एक मूल शिल्प से हासिल करता है जिसे किसी राज्य या शिल्पकारों के समूह ने लोकप्रिय बनाया था। उदाहरण के लिए,’चारपाई’ टेक्सचर में चारपाई जैसी क्रिस-क्रॉस बुनाई है जो उत्तर भारत में बड़ी आसानी से देखी जा सकती है। इसी तरह, ‘पाम वीव’ टेक्सचर ताड़ के पत्ते से प्रेरित है जो भारत के पश्चिमी तटीय राज्यों गोवा और केरल में मिलने वाले ताड़ के विशाल पत्तों से प्रेरित है।
‘बंधेज’ टेक्सचर नाम से ही लगता है कि यह पुरानी टाई-डाई (बांधकर रंगने की) शैली से प्रेरित है। कपड़ों को रंगने की यह शैली राजस्थान और गुजरात की है। इसी तरह ‘बास्केट’ (टोकरी) का टेक्सचर उत्तर पूर्व से हमारे पास आया है। उत्तर पूर्व में बाँस और बेंत के हस्तशिल्प का खासा काम है। इसमें इन्हें बहुत ही बारीकी से मोड़कर फर्नीचर के साथ-साथ कलात्मक वस्तुएँ भी बनाई जाती हैं। ‘मद्रास चेक्स’ टेक्सचर में कालातीत चारखाने वाली विनटेज बुनाई को संरक्षित किया गया है। यह देश के दक्षिणी राज्यों में खूब पसंद किया जाता है।
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