टेक्सटाइल उद्योग में इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर में सुधार करने के नाम पर जीएसटी काऊंसिल ने एक जनवरी 2022 से कपड़ा और गार्मेट्स की जीएसटी दर बढ़ा दी है। इस समय एक हजार से कम कींमत के कपड़े और गार्मेंट्स पर जीएसटी दर जो 5 प्रतिशत है, वह बढ़कर 12 प्रतिशत हो जाएगी। इससे उपभोक्ताओं द्वारा उपयोग में लिए जा रहे 85 प्रतिशत आखिरी उत्पादन की कींमत बढ़ जाएगी, जो उचित नहीं है। दी क्लोदिंग मेन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएमएआई) के प्रमुख राजेश मसंद ने बताया कि टेक्सटाइल-क्लोदिंग की संपूर्ण वैल्यूचेन के लिए 5 प्रतिशत यूनिफार्म जीएसटी दर रखना चाहिए, जिससे खपत बढ़े, उत्पादन बढ़े, रोजगार बढ़े, जबकि सरकार को आय में मामूली कमी ही होगी, यदि ऐसा न हो सकें तो वर्तमान स्थिति ही यथावत ही रखना चाहिए।
सीएमएआई के प्रमुख राजेश मसंद ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण देशभर की 15 से 20 प्रतिशत गारमेंट इकाइयां बंद पड़ गई है, अथवा उन्होंने कामकाज एकदम कम कर दिया है। कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार देने वाले इस उद्योग में ही बेकारी बढ़ी है। स्थानीय गारमेंट उद्योग कोरोना पूर्व की स्थिति से अभी 60 से 65 प्रतिशत की क्षमता पर ही पहुंचा है, और संपूर्ण क्षमता पर 2022 के आखिर तक पहुंचने की धारणा है। इससे कराधान बढ़ाने का यह उचित समय नहीं है।
कच्ची सामग्री जैसे कि यार्न, कपड़ा, फ्यूल, पैकेजिंग मटेरियल्स, ट्रासंपोर्टेशन खर्च बढ़ने से प्रोडक्ट के आखिरी भाव में 15 से 20 प्रतिशत की वृध्दि इससे पूर्व हो चुकी है। उपभोक्ता नौकरी जाने या पगार कटौती या अन्य कारणों से तनाव में है। ऐसे समय में गारमेंट्स जैसी आवश्यक चीज वस्तु के टैक्स में 7 प्रतिशत अतिरिक्त लगाना उचित नहीं।
कुल टेक्सटाइल वैल्यूचेन में इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की समस्या उद्योग के मात्र 15 प्रतिशत हिस्से को आडे आती है। इसके समाधान के नाम पर 85 प्रतिशत उद्योग पर टैक्स का भार बढ़ाना उचित नहीं, यह तो रोग की तुलना में उपचार अधिक खतरनाक साबित होगा।
सीएमएआई के चीफ मेंटर राहुल मेहता ने बताया कि हाल ही में मैनमेड़ फाइबर टेक्सटाइल को प्रमोट करने के लिए पीएलआई स्कीम और मेगा टेक्सटाइल पार्क्स की स्कीम सरकार ने घोषित की है। जिसे सार्वजनिक सराहना मिली है। इससे एमएमएफ क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की पहल से काटन क्षेत्र को नुकसान पहुंचने का भय है। भारतीय गारमेंट उद्योग, यह काटन आधारित उद्योग है। समाज के अधिकांश गरीब सूती वस्त्र और परंपरागत धोती- साड़ी पहनते है। इससे इस वर्ग को दूसरी भाव वृध्दि का डोज देना अनुचित माना जाएगा। वास्तव में आम आदमी द्वारा उपयोग की जा रही चीज वस्तु पर टैक्स की सबसे कम दर होना चाहिए।
बैंकों से इमरजेंसी क्रेडिट लाइन मार्फत एमएसएमई क्षेत्र को सरकार द्वारा दिया गया समर्थन सराहनीय था, लेकिन यह पूरा होने को है। बैंकों को यह लोन वापस लोना पड़ा है। इस लोन के पुनः भुगतान के तनाव के अलावा अब जीएसटी रिफंड में फेरबदल के कारण अतिरिक्त वर्किंग कैपिटल की जरूरत पड़ेगी। इससे जरूरी अतिरिक्त वर्किंग कैपिटल प्राप्त करने के लिए एमएसएमई इकाइयों के लिए कठिनाई होगी।
भारत की अर्थव्यवस्था का अधिकांश भाग काटन आधारित है। काटन आधारित प्रोडक्ट्स महंगा होने से संपूर्ण काटन वैल्यूचेन का भाव बढ़ेगा, यह भाव बढ़ने से खपत घटेगी। इसलिए काटन की मांग घटने से किसानों पर मार पड़ेगी, उक्त जानकारी सीएमएआई ने दी।
Add Comment