अडानी विल्मर लिमिटेड के फॉर्चून सुपोषण प्रोजेक्ट(परियोजना) जिसका उद्देश्य छोटे बच्चों में पोषण स्तर में सुधार करके कुपोषण से निपटना है, अत्यधिक सफल रही है। इस प्रोजेक्ट के एक मूल्यांकन रिपोर्ट में पाया गया है कि, इसने कुपोषण सूचक में उल्लेखनीय कमी लाने में योगदान दिया है। यह निष्कर्ष ऐसे समय में आया है, जब देश स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित जागरूकता फैलाने के लिए सितम्बर महीने को ‘पोषण माह’ के रूप में मना रहा है।
मई-2016 में लॉन्च किया गया फॉर्चून सुपोषण प्रोजेक्ट, अडानी समूह की CSR शाखा, अडानी फाउंडेशन द्वारा क्रियान्वित किया गया है। यह कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ एक मिशन है, जो कि सात राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में मुंद्रा, हजीरा, दहेज, कवाई, शिमला, तिरोरा,
सरगुजा, विंझिंजम, कामुथी और बिट्टा में दस साइटों पर कार्यरत था। इस प्रोजेक्ट तहत मौजूदा स्थलों पर 0-5 आयु वर्ग के बच्चों, किशोरियों और प्रजनन आयु में महिलाओं तक पहुंचकर संचालन जारी रहेगा।
भारत सरकार के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS 4) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में, दस साइट जिलों में पांच वर्ष की आयु के बच्चों में गंभीर तीव्र कुपोषण, मध्यम तीव्र कुपोषण और कम वजन का औसत स्तर 8.62%,15.78%और 34.3%था। फॉर्चून सुपोषण प्रोजेक्ट के माध्यम से चार साल के हस्तक्षेप के बाद, जैसा कि फॉर्चून सुपोशण की ग्राम स्वयंसेवकों की टीम द्वारा आयोजित यूनिवर्सल एंथ्रोपोमेट्रिक मापन में पाया गया, जिसे सुपोषण संगिनिस कहा जाता है, वर्ष 2019-20 में 10 साइटों पर यह स्तर क्रमश: 4.1%, 1.3%और 2.7%तक गिर गया। जिन स्थलों पर प्रोजेक्ट कार्यरत था, उनमें बड़ी गिरावट देखी गई, जिला स्तर पर संख्या में काफी कमी आई है जैसा कि हाल ही में NFHS 5 की रिपोर्ट में देखा गया था।
अडानी विल्मर के एमडी और सीईओ अंगशु मलिक ने कहा कि, फॉर्चून सुपोषण प्रोजेक्ट का अपनी साइटों पर छोटे बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार लाने में महत्वपूर्ण प्रभाव देखकर बहुत संतुष्टी व प्रसन्नता होती है। इस प्रोजेक्ट को और अधिक साइटों तक विस्तारित किया गया है, और अडानी विल्मर भारत को एक स्वस्थ देश बनाने में योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध है। फॉर्चून सुपोषण प्रोजेक्ट के पीछे प्रेरक शक्ति ‘सुपोषण संगिनी’ या सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवक हैं जो पोषण और स्वास्थ्य के स्तर में सुधार के लिए एक मार्गदर्शक, विश्वासपात्र और एक सामुदायिक सहायता प्रणाली के रूप में कार्य करते हैं।
अडानी फाउंडेशन की अध्यक्षा डॉ. प्रीति अडानी ने कहा कि, यह एक सर्वविदित तथ्य है कि मातृत्व, शिशु और बाल पोषण बच्चे की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पहलू एक बच्चे की भविष्य की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को भी बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। भारत के लिए अपने सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) को पूरा करने में सक्षम होने के लिए, हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश की स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में, अडानी फाउंडेशन द्वारा कार्यान्वित, अडानी विल्मर की एक पहल फॉर्चून सुपोषण, महिलाओं की क्षमताओं का निर्माण कर रही है, जिससे वे सुपोषण संगिनियों के दृढ़ समर्थन के माध्यम से अपने स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति का स्वामित्व लेने में सक्षम हैं। इस आकलन रिपोर्ट में प्रोजेक्ट की कई ऐसी गुणकारी बारीकियों को शामिल किया गया है, जिसने पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषण के दुष्चक्र को रोकने में मदद की है।
फार्चून सुपोषण प्रोजेक्ट का उद्देश्य कुपोषण और एनीमिया के संबंध में गुणात्मक रूप से परिणाम देने के लिए फ्रंटलाइन(अग्रिम पंक्ति के) स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के ज्ञान और कौशल को मजबूत करके संस्थागत क्षमता निर्माण करना है। सुपोषण संगिनियां स्वास्थ्य और पोषण के संबंध में समुदाय के एक अभिन्न अंग के रूप में
उभरी हैं। इस प्रोजेक्ट का अन्य उद्देश्य समुदायों को गुणवत्तापूर्ण सहायता प्रदान करने में उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए सशक्त बनाना है।
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